मुंबईके एक कर्मकांडी साधकने एक बार पूछा था कि हमने गयामें जाकर पिंडदान किया है फिर भी हमारे घरमें पितृ दोष कम क्यों नहीं हुआ है ज्योतिषके बतानेपर त्र्यम्बकेश्वर जाकर पितृ श्राद्धकी विशेष विधि भी करवाई थी फल्स्वरूप् कुछ समयके लिए हमारे कष्ट कम हो गए परन्तु पुनः हमारे घरके कष्ट बढ़ गए ऐसा क्यों ?
कई बार कई लोग पिंडदान कर आते हैं फिर भी पितरोंद्वारा हो रहे कष्ट कम नहीं होते या कुछ समय पश्चात पुनः कष्ट होने लगता है, इसके कुछ कारण हैं
१. यदि पिंडदानकी विधि श्रद्धापूर्वक नहीं करते हैं तो उसका श्राद्धकर्ताको पूर्ण लाभ नहीं मिलता
२. यदि पिंडदान करनेवाले पुरोहित सात्त्विक न हो तो भी श्राद्धकर्ताको श्राद्ध विधिका पूर्ण लाभ नहीं मिलता
३. यदि हमारे किसी वंशजकी साधना अच्छी हो और अंत समयमें उनकी इच्छा अपूर्ण रह गयी हो तो वे अतृप्त रहते हैं और ऐसेमें किसी संतकी कृपासे ही उन्हें मुक्ति मिलती है और ऐसेमें श्राद्ध विधिमें छोटी सी भी चूक हो जाने पर उन्हें गति नहीं मिल पाती है अतः परिवारके सदस्यको वे पिंडदान उपरांत भी कष्ट देते हैं जिससे कि परिवारके सदस्य उनकी गति हेतु और उत्तम प्रकारसे प्रयत्न करे
४. पिंडदानके पश्चात यदि पूर्वजकी एक टोलीको गति मिल गयी हो तो कई बार उस कुलके अन्य पूर्वजको यह बात सूक्ष्म जगतमें समझ में आ जाती है और वे उस परिवारके सदस्यका धयान आकृष्ट करनेके लिए पुनः अन्य प्रकारके कष्ट देने लगते हैं
अतः पिंडदानके साथ ही श्री गुरुदेव दत्तका जप करना चाहिए और दूसरी बात है कि मात्र हमारे दादा-दादी या पर दादा-दादी हमारे पूर्वज नहीं होते हमारे कुलमें सात पीढ़ियों तकके पूर्वजको हमसे अपेक्षा होती है और यदि किसीकी साधना अत्यंत द्रुत गतिसे चल रही हो तो अनेक पूर्वज उस जीवात्मासे सदगातिकी अपेक्षा रखने लगते हैं | पिछले एक सहस्र वर्ष में हम सनातन धर्मी जो तेजस्विता के प्रतीक हुआ करते थे ने योग्य प्रकार से धरमचरण किया ही नहीं फलस्वरूप मृत्यु उपरांत अनेक पूर्वज को गति नहीं मिली है और कलके प्रवाहमें अभी अनेक घरोमें आने वाले कालके राम राज्यकी स्थापना एवं उसके सञ्चालन हेतु दिव्य जीवात्माओंने जन्म लिया है अतः ऐसे घरोंमें कष्टका प्रमाण अधिक देखा गया है | ऐसेमें अखंड साधना रत रहना पूर्वजोंके कष्टसे रक्षण हेतु एकमात्र उपाय है | इस हेतु मृत्यूपरांत सारे श्राद्ध कर्मको करनेके साथ ही 'श्री गुरुदेव दत्त' का नियमित कमसे कम दो घंटे जप अवश्य करना चाहिए |
संकलन कर्त्री - तनुजा ठाकुर
कई बार कई लोग पिंडदान कर आते हैं फिर भी पितरोंद्वारा हो रहे कष्ट कम नहीं होते या कुछ समय पश्चात पुनः कष्ट होने लगता है, इसके कुछ कारण हैं
१. यदि पिंडदानकी विधि श्रद्धापूर्वक नहीं करते हैं तो उसका श्राद्धकर्ताको पूर्ण लाभ नहीं मिलता
२. यदि पिंडदान करनेवाले पुरोहित सात्त्विक न हो तो भी श्राद्धकर्ताको श्राद्ध विधिका पूर्ण लाभ नहीं मिलता
३. यदि हमारे किसी वंशजकी साधना अच्छी हो और अंत समयमें उनकी इच्छा अपूर्ण रह गयी हो तो वे अतृप्त रहते हैं और ऐसेमें किसी संतकी कृपासे ही उन्हें मुक्ति मिलती है और ऐसेमें श्राद्ध विधिमें छोटी सी भी चूक हो जाने पर उन्हें गति नहीं मिल पाती है अतः परिवारके सदस्यको वे पिंडदान उपरांत भी कष्ट देते हैं जिससे कि परिवारके सदस्य उनकी गति हेतु और उत्तम प्रकारसे प्रयत्न करे
४. पिंडदानके पश्चात यदि पूर्वजकी एक टोलीको गति मिल गयी हो तो कई बार उस कुलके अन्य पूर्वजको यह बात सूक्ष्म जगतमें समझ में आ जाती है और वे उस परिवारके सदस्यका धयान आकृष्ट करनेके लिए पुनः अन्य प्रकारके कष्ट देने लगते हैं
अतः पिंडदानके साथ ही श्री गुरुदेव दत्तका जप करना चाहिए और दूसरी बात है कि मात्र हमारे दादा-दादी या पर दादा-दादी हमारे पूर्वज नहीं होते हमारे कुलमें सात पीढ़ियों तकके पूर्वजको हमसे अपेक्षा होती है और यदि किसीकी साधना अत्यंत द्रुत गतिसे चल रही हो तो अनेक पूर्वज उस जीवात्मासे सदगातिकी अपेक्षा रखने लगते हैं | पिछले एक सहस्र वर्ष में हम सनातन धर्मी जो तेजस्विता के प्रतीक हुआ करते थे ने योग्य प्रकार से धरमचरण किया ही नहीं फलस्वरूप मृत्यु उपरांत अनेक पूर्वज को गति नहीं मिली है और कलके प्रवाहमें अभी अनेक घरोमें आने वाले कालके राम राज्यकी स्थापना एवं उसके सञ्चालन हेतु दिव्य जीवात्माओंने जन्म लिया है अतः ऐसे घरोंमें कष्टका प्रमाण अधिक देखा गया है | ऐसेमें अखंड साधना रत रहना पूर्वजोंके कष्टसे रक्षण हेतु एकमात्र उपाय है | इस हेतु मृत्यूपरांत सारे श्राद्ध कर्मको करनेके साथ ही 'श्री गुरुदेव दत्त' का नियमित कमसे कम दो घंटे जप अवश्य करना चाहिए |
संकलन कर्त्री - तनुजा ठाकुर
TANULA JI WELL DONE THIS TYPE OF INFORMATION IS VERY IMPORTANT. THANX.
ReplyDeleteye gurudev dutt kya hai
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