Thursday 2 February 2012

साधक किसे कहते हैं ? भाग -2

प्रिय मित्रों इस लेख की शृंग्खला में साधक किसे कहते हैं उससे संबन्धित अपने कुछ अनुभव आपके साथ बाटुंगी | 
एक बार एक अत्यंत ही संभ्रांत परिवार की स्त्री साधना करने लगीं | उनके पति राजसिक प्रवृत्ति के थे और अपने करोड़ों की धन पर उन्हें अहम था | पर वे सज्जन प्रवृत्ति के थे और प्रसार सेवा में अपनी गाड़ी से हम साधकों को सहर्ष सेवास्थल तक पहुंचा दिया करते थे और पुनः लेकर भी आते थे | मुझे सुबह सैर करने की आदत है और सैर में हमारी उनसे बातें हुआ करती थीं | मैं जब भी उन्हे नामजप के लिए कहती वे कहते मैं क्यों करूँ नामजप ईश्वर ने मुझे सब दिया और मुझे कुछ चाहिए नहीं, मैं संतुष्ट हूँ और सुखी भी यह कहकर वह मेरी बात टाल देते हैं | एक दिन पुनः इसी विषय पर चर्चा होने लगी वे जानबूझ कर विषय उठाते थे क्योंकि उन्हे थोड़ी जिज्ञासा भी थी और मेरी सुई उन्हे नामजप करने के प्रवृत्त करने पर अटक जाती थी, एक दिन उन्होने पुनः वही प्रश्न किया मैं क्यों नामजप करूँ ? पता नहीं कैसे मेरे मुह से सहज ही निकाल गया “भैया जब विपरीत परिस्थिति आती है तब ईश्वर काम आते हैं पैसे नहीं “ उन्होने कहा “ मैं आपकी बात से सहमत हूँ पर मेरे जीवन में ऐसी परिस्थिति क्यों आएगी ? मैंने शांत रहना ही उचित समझा | 20 जनवरी को वे गुजरात गए थे वहाँ कोई अपने व्यवसाय के हेतु | 26 जनवरी को भुज में अत्यंत बड़ा भूकंप आया | वे उस समय भुज क्षेत्र में थे | 26 जनवरी के दिन हमारा साप्ताहिक सत्संग था और उनकी पत्नी वह सत्संग का संचालन करती थी मैंने वहाँ के सत्संग का उत्तर दायित्व उन्हे सौंप दूसरे शहर प्रसार के लिए जाने लगी थी | जैसे ही वे सत्संग में जाने के लिए निकलीं उन्हे सूचना मिली कि जिस क्षेत्र में भूकंप आया था उनके पति और मित्र दोनों उसी क्षेत्र में एक दिन पहले पहुंचे थे और वहाँ भूकंप के कारण भयंकर विनाश हुआ था | इतना सुनने पर भी वह स्त्री साधक अपने सत्संग लेने को अपना कर्तव्य मान, मन को स्थिर कर सत्संग लेने के लिए गईं और वहाँ किसी को भी नहीं बताया कि उनके पति भूकंप वाले क्षेत्र में कल से हैं | अगले दो दिन तक उनके पति कि कोई सूचना नहीं मिल पायी उन्हे | मुझे किसी और साधक के माध्यम से सब पता चला मैंने उनसे बातचीत कि तो वह थोड़ी परेशान थी जो स्वाभाविक था , मैंने उनसे कहा, “आप चिंता न करें ईश्वर सब अच्छा ही करेंगे “ | तीसरे दिन उनके पति ने उन्हें दूरभाष कर बाते कि ईश्वर कृपा से वे मलबे से सुरक्षित निकल पाये थे परंतु सारा संचार तंत्र उद्ध्वस्त होने के कारण तुरंत सूचना नहीं दे पाये थे | एक सप्ताह के पश्चात मैं उनके घर पहुंची तो उनके पति आ पहुंचे थे और भूकंप की त्राहि मां का भय उनके चेहरे पर स्पष्ट दिख रहा था | उन्होने जो आपबीती बताई वह बताती हूँ , उन्होने कहा , “जब भूकंप आया तो वे और उनके मित्रा दोनों भुज में एक होटल में थे | मित्र शौचालय में था और वे भी स्नान कर निकले ही थे | अचानक ताश के पाते समान उनका आलीशान होटल हिलाने और ढहने लगा | उन्होने अपने मित्रको शौचालय से बुला दोनों पलंग के नीचे हो लिए | और आश्चर्य उनका कमरा एक माचिस के डिब्बे समान सुरक्षित ढह कर नीचा आ गिरा | रात भर वे उसी स्थिति में रहे और अगले दिन कुछ मलबा हटने पर वे किसी प्रकार बाहर आ पाये | उन्होने कहा, दो दिन हम दोनों मित्र तौलिये में विनाश लीला देख रहे थे , हमारे पास इतना पैसा होते हुए भी हम पूर्णत: असहाय थे और मुझे आपकी बात याद आ रही थी और मुझे लगता है मैं अपनी पत्नी की साधना के कारण जीवित हूँ’’ !!!!
परंतु इतना होने पर भी उन सज्जन ने साधना आरंभ नहीं की क्योंकि ईश्वर का नाम प्रत्येक व्यक्ति के बस की बात नहीं जब तक उनकी कृपा न हो कोई कितना भी पैसेवाला हो वह भक्ति नहीं कर सकता | यहा पर उस स्त्री के साधकत्व ने सज्जन की रक्षा की | ईश्वर भक्तवत्सल हैं , सज्जन वत्सल नहीं, उन्होने गीता में कहा है ‘परित्रानाय साधुनाम’ अर्थात साधकों का रक्षण करता हूँ सज्जन का नहीं परंतु उस स्त्री के साधकत्व का परिणाम ईश्वर ने दे दी | अतः सज्जनों साधक बनो !!

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