Thursday 2 February 2012

प्रसार संस्मरण


:
वर्ष 1999 में मैं झारखंड (तब बिहार था ) के धनबाद जिले में प्रसार की सेवा करती थी | छोटा शहर होने के कारण पब्लिक ट्रांसपोर्ट के उस समय अच्छे साधन नहीं थे | या रिक्शा हुआ करता था या जीप जो संध्या पाँच बजे के पश्चात शहर के अंदर नहीं चालत था | मुझे प्रसार की सेवा में अडचण न आए इस हेतु श्रीगुरु ने गोवा से दो पहिये वाहन (स्कूटी) भिजवाए थे | मुझे स्कूटी चलानी  नहीं आती थी  | बालसंसकर में दसवीं और ग्यारहवीं के कुछ युवा साधक मुझे स्कूटी सीखाने का प्रयास कर रहे थे | मैं चार- पाँच दिन कॉलोनी के ही सड़क पर उसे चलाने का प्रयास कर रहे थी परंतु में चला तो लेती थी परंतु बीच में पैर का टेक डाल दिया करती थी | उसी कॉलोनी में हमारी एक स्त्री साधक के पति उसी समय सैर किया करते थे औए मेरे स्कूटी सीखने के संघर्ष को देख कर मुस्कुराया करते थे | वे यद्यपि साधना नहीं करते थे परंतु सज्जन पुरुष थे और हमे और हमारी वानर सेना को सेवा स्थल से कभी भी लाने और ले जाने की सेवा के लिए तत्पर रहते थे | पांचवें दिन उन्होने कहा, “ तनुजा दीदी आप ऐसे स्कूटी कभी नहीं सीख पाएँगी कल हम आपको सुबह स्कूटी सिखाने ले जाएंगे आप एक साधक के साथ गोल्फ ग्राउंड पर चलें | हम कुछ  साधक पास ही के मैदान में सुबह सुबह पहुँच गए | मैं स्कूटी का हैंडल पकड़ खड़ी हो गयी उनसे कहा , अब आप सिखाएँ कैसे चलाऊँ मैं इसे “ वे मेरी ओर देखे और एक शरारत भरी मुस्कान  से बोल पड़े “ आप तो कहती हैं मुझे मेरे गुरु पर अत्यधिक श्रद्धा है यदि आपमे 5% भी गुरुभक्ति है तो आप यह गाड़ी को तुरंत  आरंभ कर  और मैदान के चार चक्कर लगाकर ही मेरे पास आएंगी” | मैं उनकी ओर देख रही थी और हमारे साथ आए चार युवा साधक भी थे , मैंने सबकी ओर देखा  वे सब भी आश्चर्य से उस सज्जन की ओर देख रहे थे , मैंने गाड़ी आरंभ की और जोश में चार चक्कर लगाकर उनके सामने खड़ी हो गयी, सारे साधक ताली बजाने लगे मैं उनके पास गयी बोली “अब क्या कहते हैं” ? वे कहने लगे “मान गए आपको, मुझे पहले ही पता था आप चला सकती हैं परंतु मन से डर नहीं हट रहा था अतः मुझे ऐसा करना पड़ा”, मैंने  कहा, “पर स्कूटी  चलाना तो सिखाएँ” उन्होने हँसते हुए कहा “अब क्या सिखाऊँ आप तो सीख गयी घर चलें मेरे चार पहिये के पीछे पीछे” !! सारे बचे खिलखिला हंस पड़े मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि उनपर गुस्सा करूँ या धन्यवाद दूँ क्योंकि उन्होने मुझे उल्लू बनाया था इसमे दो राय नहीं !!! परंतु निश्चित ही मेरे श्रीगुरु का उस निर्गुण रूप के प्रति सदैव कृतज्ञ रहूँगी क्योंकि मुझे गाड़ी सीखना  अति आवश्यक था और वह भी शीघ्रता से, यह उन महोदय ने कर दी !! 
   

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