Thursday 25 August 2011

मेरे सर्वज्ञ सद्गुरु भाग – 2

सदगुरुको मात्र स्थूल देह समझनेका भूल न करें वे सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान एवं सर्वव्यापी होते हैं और अपनी इस विशेषताका परिचय वे अपने शिष्यको उसकी पात्रता एवं श्रद्धा अनुसार अनुभूतिके माध्यमसे देते हैं | मई १९९७ में मुझे परम पूज्य गुरुदेवके प्रथम दर्शन एवं सत्संगका सौभाग्य प्राप्त हुआ | प्रथम दर्शनमें ही अनेक अनुभूतिके माध्यमसे उन्होंने अपने सर्वज्ञता का परिचय दे दिया | उनके प्रथम दर्शनके समय हुई कुछ अनुभूतियाँ सर्वप्रथम आपके समक्ष प्रस्तुत करती हूँ |
जिस दिन मैं उनके प्रथम दर्शन करने गयी थी, उस दिन भारत और पाकिस्तानका एक दिवसीय क्रिकेट खेल था, अन्य युवावर्गके सामान मुझे भी क्रिकेट देखनेमें अत्यधिक रूचि थी | दिवस और रात्रि अर्थात day-night मैच था, मैं कार्यालयसे घर आकर दूरदर्शनपर मैच देख रही थी, इतनी अधिक रूचि थी मुझे खेल देखनेमें, कि मैंने एक साधकको पिछले दिन ही बता दिया था की मैं अगले दिन सेवाके लिए नहीं आ पाऊँगी वैसे जबसे मैं सनातन संस्थाके सत्संगमें जाने लगी थी तबसे प्रतिदिन धर्म प्रसारकी सेवा कार्यालयके पश्चात किया करती थी |
घर आकर क्रिकेट देखते हुए आधे घंटे ही हुए थे और मेरा मन विचलित होने लगा खेल देखनेकी इच्छा नहीं हो रहो थी, ऐसा लग रहा था की कोई मुझे बुला रहा हो, दूरदर्शन संचको बंद कर जिस साधकके साथ प्रतिदिन प्रसारकी सेवा हेतु जाती थी उस स्थल पर मैं गयी तो देखा कि वे सचमें अकेली थीं और किसी साधकका राह देख रही थी, जो किसी करणवश नहीं पहुँच पाए थे | मुझे देखकर उन्हें आनंद भी हुआ और आश्चर्य भी ! उन्होंने मुझसे कहा, "आप तो नहीं आनेवाले थे फिर यहाँ कैसे आ गए, " मैंने मुस्कुराते हुए कहा "क्या करूँ आपने मुझे यहाँ आनेके लिए बाध्य कर दिया | हम दोनों साधकोंने एक घंटे प्रसारकी सेवा की, उसके पश्चात उन्होंने कहा, "मुझे परम पूज्य गुरुदेवके मुंबई आश्रममें कुछ सेवाके लिए जाना है, क्या आप भी मेरे साथ आना चाहेंगी" ? उस समय परमपूज्य गुरुदेव डॉ. आठवले मुंबईमें रहते थे | मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था क्योंकि दो महीने पहले जब मैंने परम पूज्य गुरुदेवके दर्शन हेतु इच्छा जताई थी तो उन्होंने कहा था, "संत दर्शन हेतु अपनी पात्रता बढानी होती है और उसके लिए हमें नामजप, धर्मप्रसारकी सेवा करनी पड़ती है और पात्रता निर्माण होनेपर ही उनके दर्शन एवं मार्गदर्शनका सौभाग्य प्राप्त हो सकता है | मैं उस समय मुंबईमें ही थी और दो महीने पहले एक सम्बन्धीके माध्यमसे परम पूज्य डॉ. जयंत आठवलेद्वारा लिखित ग्रन्थ पढ़कर सनातन संस्थाके सत्संग में गयी थी और ग्रन्थमें बताये गए ज्ञान और लेखन शैलीसे मैं इतनी प्रभावित थी कि मैं परम पूज्य गुरुदेवसे तुरंत ही मिलना चाहती थी | वास्तविकता यह है कि सत्संगके बारेमें पता चलने पर भी जैसे कोई अदृश्य शक्ति मेरी राह रोक रही थी और मैं चाहकर भी कोई न कोई अड़चनके कारण सत्संगमें नहीं जा पा रही थी . मात्र परम पूज्यके द्वारा लिखित ग्रन्थ पढनेके पश्चात मैं सारी बाधाओंको पारकर सत्संगमें पहुँच पायी थी |
और जब मैंने परम पूज्य गुरुदेवसे मिलनेकी बात कही तब इन्हीं साधकने कहा था कि उनके दर्शन हेतु हमें साधक बननेका प्रयास करना होगा और साधकत्व निर्माण करने हेतु मैंने सत्संगसेवकके मार्गदर्शनमें साधना आरम्भ कर दी थी, जब एक बार मैंने उनसे पुछा था, "उनके दर्शन हेतु पात्रता कितने दिनोंमें निर्माण हो सकती है" ? तो वे मुस्कुराकर बोलीं, "यह आपकी तड़प और प्रयासपर निर्भर करेगा है और साथ ही यह भी कहा कि कभी-कभी वर्षों प्रयास करने पड़ते हैं" | अतः जब उन्होंने मुंबईके सायन आश्रममें साथ जानेके लिए पूछा तब मुझे उनकी इस बातपर विश्वास नहीं हो रहा था कि मात्र दो महीनेके प्रयासमें ही मुझे परम पूज्य गुरुदेवके दर्शनका सौभाग्य प्राप्त हो जायेगा | मैं अत्याधिक आनंदित हो गई और उनके साथ सायन आश्रम पहुंची | उन्होंने जाते समय यह भी कहा था कि हो सकता है परम पूज्य गुरुदेव व्यस्त हो और मुझे मात्र उनके दर्शनसे ही संतोष करना पड़े और उनका मार्गदर्शन न मिल पाए | मैं उसके लिए भी तैयार थी, परन्तु वहां पहुँचनेपर ऐसा भान हुआ जैसे परम पूज्य गुरुदेव भी मेरी राह देख रहे हों | मुझे आज भी उस दिनका स्मरण है जब घरमें दूरदर्शन संचपर खेल देखते समय, मेरे मन विचलित हो रहा था जैसे मुझे कोई बुला रहो हो इसका आभास अत्यंत स्पष्टतासे हो रहा था |
प्रथम दर्शन और सत्संगमें ही परम पूज्य गुरुदेवने अपनी सर्वज्ञताका परिचय मुझे अनेक अनुभूतियोंके माध्यमसे दी, मेरे जीवनका वह दिन अविस्मर्णीय है और सर्वदा रहेगा |
उन्हें प्रणाम करनेके पश्चात उनका पहला प्रश्न था कि आज तो भारत पाकिस्तानका क्रिकेट मैच फिर आप यहाँ कैसे आ गए ? जैसे मानो किसीने उन्हें बता दिया हो कि मैं क्रिकेटके खेलके प्रति अत्याधिक आसक्त हूँ, और आगे उन्होंने कहा कि जब तक भारत आध्यात्मिक रूपसे सक्षम नहीं होता उसे प्रत्येक क्षेत्रमें सदा हारका मुख देखना पड़ेगा और उस दिन भारत क्रिकेटके खेलमें एक रनसे हार गया, यह बात जब हम आश्रमसे निकल कर बाहर आये तो एक व्यक्ति जो खेलका आँखों देखाहाल रेडियोपर सुन रहा था, उनसे पता चला |
इस प्रसंगसे एक और महत्वपूर्ण परिवर्तन मेरे जीवनमें आया, उस दिनके पश्चात क्रिकेटके खेलमें, मेरी रूचि पुर्णतः समाप्त हो गयी, वास्तविकता यह है कि संत एक दृष्टि हमारे मनके प्रबल अनावश्यक संस्कार नष्ट कर देते हैं यह उनकेद्वारा प्रक्षेपित चैतन्यके कारण होता है इसका मुझे कुछ समय पश्चात भान हुआ | क्रिकेट देखनेके कारण मेरे जीवनके महत्वपूर्ण समय नष्ट हो रहे हैं, इसका मुझे तीव्रतासे भान होता था परन्तु मैं अपने इस आदतको नहीं छोड़ पा रही थी और मात्र परम पूज्यके एक वाक्यने वह चमत्कार कर दिखाया | उस दिन मुझे उनका लगभग ४५ मिनटका सत्संग प्राप्त hua . और उस दौरान उन्होंने स्वयं ही मुझे जलपान लाकर दी, उसमे एक मिठाई भी थी, मुझे मीठा पसंद है अतः मैं उसे अंत में ग्रहण करने का सोच ही रही थी तो उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, "आपको भी मेरी तरह मीठा पसंद है न", उनकी बात सुन मैं मुस्कुराने लगी जलपान आरम्भ करते समय विचार आया कि संतके हाथसे प्रसाद मिला है इसे अपने साथ रह रहे एक सम्बन्धीके लिए भी जाऊं, उसी क्षण उन्होंने कहा कि आप इस प्रसादको ग्रहण करे, घर ले जानेके लिए मैं और मिठाई दे दूंगा, उनकी यह बात सुन मैं पुनः मुस्कराने लगी और थालीकी संपूर्ण प्रसादको ग्रहण कर लिया | उस दिन ऐसा लग रह था जैसे वे मेरे जैसे मनमें चलने वाले प्रत्येक विचारको पढ़ रहे हों | उच्च कोटिके संत निर्विचार अवस्थामें रहते अतः सामने वाले व्यक्तिका विचार उनके मनमें सहज ही प्रतिबिंबित हो जाता है |
उसके पश्चात उन्होंने पुछा कि मैं भविष्यमें क्या करना चाहती हूँ मैंने कहा कि मैं I.A.S. अर्थात लोक सेवा आयोगसे जुड़कर समाजकी सेवा करना चाहती हूँ | तब उनका तुरंत ही कहना था कि चलो अच्छा हुआ आप अभी तक I.A.S नहीं बनी हैं अन्यथा कैसे-कैसे भ्रष्ट नेताओंकी छत्रछायामें आपको काम करना पड़ता ! मैं प्रशासनिक सेवामें कुछ विशेष कारणसे जाना चाहती थी | मेरी बारहवींकी बोर्ड परीक्षामें बिहारमें व्यापक स्तरपर भ्रष्टाचार हुआ था | बिहार इंटर कौंसिलमें बड़े स्तर पर हुए भ्रष्टाचारके परिणाम स्वरुप विद्यार्थियोंकी कापियां जाँची ही नहीं गयी थीं और सभी विद्यार्थियोंको मनमाना अंक दे दिया गया था जिस कारण मुझे ५८% अंक आये | माँ सरस्वतीकी कृपासे सदा ९०% से ऊपर अंक आता था अतः इस घटनाने मुझे अन्दर तक झकझोर रख दिया और उसी दिन मैंने व्यवस्था परिवर्तन करनेके लिए लोक सेवा आयोगके माध्यमसे प्रशासनिक अधिकारी बन भ्रष्टाचार मिटानेका संकल्प लिया था, भ्रष्ट लोग मुझे तनिक भी नहीं सहन होते हैं इसका आभास भी मेरे श्रीगुरुको था | जब परम पूज्य गुरुदेवने यह कहा कि अच्छा हुआ आप अभी तक I.A.S. नहीं बनी है तब मुझे ध्यानमें आया कि मुझे उस ध्येयतक पहुँचनेमें अनेक बाधाएं आ रही थी, कहीं न कहीं श्रीगुरु ही मुझे उस मायाजालमें जानेसे रोक रहे थे | गुरुको यह पता होता है कि मेरे शिष्यके लिए क्या योग्य है और क्या अयोग्य ! अतः शिष्यके जीवनमें स्थूल रूपमें प्रवेश करनेसे पूर्व ही वे शिष्यके प्रत्येक महत्वपूर्ण कृति पर दृष्टि रखते हैं | उनके इस वाक्यमें न जाने क्या जादू था कि उस दिनके पश्चात मेरे सिरसे I.A.S. का भूत पुर्णतः उतर गया और एक समयमें लौकिक सरकारकी सेवाके माध्यमसे व्यवस्था परिवर्तनका स्वप्न देखने वाली मैं, उस दिनके पश्चात आनंदपूर्वक श्रीगुरुके शरणमें साधना कर स्वकल्याण एवं समाजके कल्याण और उत्थान हेतु उस अलौकिक सरकारकी सेवा करने हेतु प्रेरित हुई .और आज इसे मैं अपना सौभाग्य मानती हूँ | उस दिन मुझे लगा कि प्रथम बार आज किसी ऐसे व्यक्तित्त्वसे मिली हूँ जो मेरी क्षमता एवं मेरे आतंरिक भावनाओंको समझ सकते हैं और इसकी प्रचिती आज भी मुझे स्पष्टतासे होती है |
उन्हें मेरी स्थूल और सुक्ष्म क्षमताका पूर्ण भान था, सन २००० से २०१० तक चलनेवाले सूक्ष्म युद्धमें उन्होंने मुझे सहभागी किया, इस सूक्ष्म युद्धका आगे चलकर संपूर्ण व्यवस्था परिवर्तनमें अभूतपूर्व योगदान रहेगा, कहाँ मैं तो स्थूलसे व्यवस्था परिवर्तनके बारेमें सोच रही थी परन्तु मेरे श्रीगुरुने मुझे उससे भी आगेकी सेवा करवा कर ले ली और आनंदकी बात यह है कि इसका आभास मुझे २०१० के पश्चात हुआ जब सुक्ष्म युद्धकी समाप्ति हो गयी | सदगुरुको पता होता कि शिष्यकी आध्यात्मिक प्रगति हेतु सर्वोत्तम सेवा क्या हो सकती है !
To be continued …………..
If any of my friend would like to translate this series of article as a part of seva in Englsih please do inform me at upasana908@gmail.com as I have friends spread over 90 countries who would like to read this series of article if it gets published in English too , I wont be able to translate the article due to time constraint . regards – tanuja


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