Monday 29 August 2011

क्या मात्र 'मैं अन्ना हूँ' कहनेसे यह देश भ्रष्टाचार मुक्त हो जायेगा ?


क्या मात्र 'मैंअन्ना हूँ' कहनेसे यह देश भ्रष्टाचार मुक्त हो जायेगा ? या हम प्रत्येक नागरिकको अंतर्मुख होकर अपने अंदर परिवर्तन करनेका प्रयास करना होगा | दो दिन पहले हुए कुछ आत्मानुभव बताना चाहूंगी |

दिनांक २७.८.११ को मैं चेन्नईसे बंगलुरु ट्रेनसे आ रही थी उस दिनके कुछ प्रसंग बताती हूँ जो यह सोचनेके लिए बाध्य करता है कि हमारे देशके लोगोंने क्या मात्र जन लोकपालके लिए आन्दोलन करनेसे या एक अन्नाजी देशको सुधार सकते हैं ?

दिनांक २७.८.११ को मैं एक taxi से सुबह स्टेशन पहुंची taxiवाले ने ११० रूपये के स्थान पर २८० रूपयेकी रसीद थमा दी मैंने कहा यह क्या है ? उसने कहा आपने taxi ‘वेटिंग में रखी मैंने कहा, " ऐसा तो नहीं है" | मैंने taxi सुबह ४.४५ की बुलाई थी और ४.४५ बजे मैं taxi में बैठ गयी थी उसने झटसे झूठ कह दिया कि मैंने taxi ४.३० बजे बुलाई थी मैंने कहा ऐसा नहीं है मैं ४.४५ में taxi में बैठ गयी थी, उसने नहीं माना और जानबूझ  कर तमिल में कुछ- कुछ बोलने लगा जबकि उसे हिंदी और अंग्रेजी दोनों ही भाषा आती थी और अंत में मुझसे २८० रूपये ले लिए ( बादमें मैंने एक साधक को बोलकर उस taxi के company में शिकायत दर्ज करायी) | जब कुलीको बुलाकर पूछा तो उसने कहा २ नंबर platform पर जानेके लिए १५० रूपये लेंगे, जबकि अधिकसे अधिक पचास रूपये होना चाहिए और साथ ही उसे हिंदी नहीं आती, यह भी नाटक कर रहा था | जब मैंने उससे थोड़े गुस्सेसे कहा कि इतनी कम दूरीके तो ५० रूपये ही होना चाहिए और मेरे पास अधिक सामन भी नहीं तो वह तमिलमें कुछ-कुछ बोलने लगा बूझ और बाद में हिंदी में मेरे साथ बकझक करने लगा | स्वंतंत्रताके ६४ वर्ष पश्चात भी पूरे देशको एक सूत्रमें पिरोने वाला एक राष्ट्र भाषाको नहीं प्रचलित कर सकने वाले ऐसे भ्रष्ट राष्ट्रद्रोही नेताओंके प्रति घृणा होती है ! विशेषकर दक्षिण भारतका राष्ट्र भाषाके प्रति इतनी नकारात्मकता चिंताका विषय है |
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दो तीन कुलीसे पूछा परन्तु कोई भी कूली तैयार नहीं हुआ आखिरकार मुझे किसी प्रकार से ५० रूपयेके स्थान १०० रूपये देकर जाना पड़ा ( आज हम भ्रष्टाचार सामूहिक रूपसे सोच समझ कर करते हैं) | उनलोगोंने देखा कि अकेली स्त्री है, सामान तो इनता उठेगा नहीं चलो मिलकर मनमाना पैसा मांगे | कहाँ एक समय स्त्रीको निःसंकोच सहायता करनेको पोषण देने वाली हमारी भारतीय संस्कृति हुआ करती थी और कहाँ कहीं भी किसीकी भी मजबूरीका लाभ उठाने वाला आज का यह भ्रष्ट भारत देश ! एक अकले अन्ना हजारे या मात्र जन लोकपाल बिल भारतको भ्रष्टाचारमुक्त कभी भी नहीं कर सकता जब तक प्रत्येक भारतीय अपने अन्दरकी असुरी वृत्तियोंका दमनका देश और समाज हितका अखंड विचार नहीं करेगा | अन्नाका आन्दोलन मात्र इस लड़ाईकी शुरुआत है ! इसके पश्चात जब बंगलुरु आई तो कूली और ऑटो वालेका फिरसे यही तमाशा रहा | ऑटोवालेने नया समझकर फिरसे मुझे उल्लू बनाया और सौ रूपयेके स्थानपर दो सौ रूपये लिए और ऑटोमें बिठानेसे पूर्व उसने कहा था कि जहाँ मुझे जाना उसे वह स्थान पता है मात्र ऑटोमें बैठनेके पश्चात उसने कहना शुरू कर दिया कि उस स्थानके नामके तीन जगह हैं अतः अब आप जिनके यहाँ जा रहे हैं उनसे मेरी बात करा दो | वास्तविकता यह है उस स्थानतक पहुँचानेमें यदि वह मुझे घुमा फिरा कर ले जाये तो मुझे उसे दोष नहीं देना है और अधिक पैसा भी देना होगा यह उसका मंतव्य था | अतः अंतमें अपने क्रोध रुपी हथियारका प्रयोग करना पड़ा और तब मैं किसी प्रकार २०० रूपयेमें निर्धारित स्थानपर पहुँच पाई यह है हमारे आजके भारतकी एक झलक | चेन्नई और बंगलुरु में ऑटो वाले मनमाना पैसा लेते हैं और वहां इसके बारे प्रशासन तनिक भी ध्यान नहीं देते हैं ऑटो मीटरसे चलना चाहिए यह छोटी सी व्यवस्थाको लागू नहीं कर पाने वाली हमारी सरकार और नौकरशाहीके लिए किन शब्दों का प्रयोग करना योग्य होगा आप स्वयं ही विचार करें | ऐसी घटनाएँ हमारे साथ प्रत्येक दिन होते ही रहता है और हम भारतियोंने इसके साथ समझौता कर जीना सीख लिया है | मैं इश्वरको प्रतिदिन ऐसे घटनाओंके लिए धन्यवाद् देती हूँ क्योंकि ये घटनाएँ मेरे अन्दर इस देशकी व्यवस्था परिवर्तन और समाज परिवर्तनकी ज्वालाको प्रज्वलित रखनेमें सहायता करती है और कार्य करनेके लिए मेरे संकल्प को और भी दृढ़ !

संकलक - तनूजा ठाकुर

1 comment:

  1. इसका सही इलाज़ सिर्फ ये है की ऐसे भ्रष्ट लोगों के खिलाफ सिर्फ और सिर्फ पुरजोर विरोध शोषित व्यक्ति को बिना किसी डर के तत्क्षण करना पडेगा...चाहे वो स्त्री हो या पुरुष....~ साथ ही एक चीज़ ये भी दिमाग में रखना पड़ेगा की कल को मैं भी किसी निरीह व्यक्ति के साथ ऐसा न करूँ... और एक बात याद रखने वाली है 'हम सुधरेंगे,युग सुधरेगा ~हम बदलेंगे,युग बदलेगा'~ बस.........

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