Sunday 28 August 2011

गुरुसंस्मरण भाग - ३

मुझे लोगोंको ज्ञान बांटना अत्यंत प्रिय है यह जानने वाले मेरे सर्वज्ञानी श्रीगुरु !

मई १९९७ में प्रथम दर्शनके दिन जब मैं लौटने लगी तब उन्होंने चलते-चलते सहजतासे कहा, "आप सत्संग लेना आरम्भ करें" | परम पूज्य गुरुदेवके भेंटसे पूर्व भी अध्यात्मके बारेमें मुझे जो भी थोड़ी बहुत जानकारी थी उसे मैं अपने मित्रों और परिचितोंको बताया करती थी, मेरी यह विशेषताका भी उन्हें ज्ञान था और इसलिए उन्होंने मुझे सत्संग लेनेकी आज्ञा दे दी | आमतौर सनातन संस्थाकी पद्धति है कि पहले हम किसी साधकको अध्यात्मका प्रस्तावनात्मक विवेचन इस ग्रन्थसे सत्संग लेनेके लिए कहते हैं जिससे लोगोंको विषय बताते समय साधकको भी अध्यात्मके सारे मौलिक विषय समझमें आ जाये और उन मुद्देको वह अपने जीवनमें उतार सके परन्तु मुझे सत्संगमें लेनेके जो प्रथम ग्रन्थ दिया गया वह था 'शिष्य' ग्रन्थ | उस ग्रन्थने मेरे अन्दरके शिष्यत्वको निखारनेमें अत्यधिक सहायता की | और उस ग्रन्थमें बताये गए प्रत्येक मुद्देको मैं अत्यंत गंभीरतासे अध्ययन कर उसे जीवनमें उतारनेका प्रयास करने हेतु तन, मन, धनसे सेवा करने लगी और कुछ ही महीनेमें यह ध्येय बना लिए की ५५% अध्यात्मिक स्तर साध्य कर शिष्य बनना है |

५५% स्तर यह क्या है इस विषयको समझनेके लिए स्तरानुसार साधना जानना आवश्यक है | इस विषयको में संक्षेपमें बताती हूँ | यह मुद्दा हमारे श्रीगुरुने 'अध्यात्मका प्रस्तावनात्मक विवेचन' नामक ग्रन्थमें विस्तारपूर्वक बताया है |



आगे जो अनुभूति बताने वाली हूँ उसे समझनेके लिए स्तरानुसार साधना जानना आवश्यक है अतः उसे संक्षेपमें बताती हूँ |

संपूर्ण श्रृष्टिका निर्माण इश्वरने किया है अतः सजीव निर्जीव सभीमें कुछ न मात्रामें सात्त्विकता है ही निर्जीव पदार्थोंमें १ से २% तो सजीव वनस्पति जगतमें लगभग ५% एवं प्राणी जगतमें १०% लगभग सात्त्विकता होती है और मनुष्य योनीमें जन्म लेनेके लिए कमसे कम २०% सात्त्विकता होनी चाहिये ! और इश्वरसे पूर्णतः एकरूप हुए संतोंकी सात्त्विकता १००% होती है | २०% अध्यात्मिक स्तरका व्यक्ति नास्तिक समान होता है उसे अध्यात्म, देवी-देवता, धर्म इत्यादिमें कोई रूचि नहीं होता, ३०% स्तर होनेपर व्यक्ति कर्मकांड अंतर्गत पूजा-पाठ करना, तीर्थक्षेत्र जाना, स्त्रोत्र पठन करना, जैसी शरीरके माध्यमसे साधना करने लगता है | ३५% स्तर साध्य होनेपर खरे अर्थमें उसकी अध्यात्मके प्रति थोड़ी रूचि जागृत होती है और वह साधना करनेका प्रयास आरम्भ करता है | ४०% स्तर होनेपर वह मनसे नामजप करने का प्रयास करता है और ४५ % स्तर आनेपर उसकी अध्यात्ममें रूचि बढ़ने लगती है और अनेक प्रकारकी साधनासे एक प्रकारकी साधनामें उसका प्रवास आरम्भ हो जाता है | ५०% स्तर साध्य होनेपर वह व्यवहारिक जीवनकी अपेक्षा अध्यात्मिक जीवनको अधिक महत्व देने लगता है और सत्संगमें जाना और सेवा करना जैसी अध्यात्मिक कृति निरंतरतासे करने लगता है | ५५% स्तर साध्य करने पर खरे गुरुका उसके जीवनमें प्रवेश हो जाता है और वह तन, मन एवं धन तीनों का ५५% भाग किसी गुरु को, ये गुरुके कार्यके लिए या धर्मकार्यके लिए अर्पण करने लगता है | ६०% अध्यात्मिक स्तरपर खरे अर्थमें सेवा आरम्भ होती है | इससे नीचेके स्तरपर मन एवं बुद्धिद्वारा विषय समझकर सेवा करनेका प्रयास करते हैं | ७०% स्तरपर साधक संतके गुरु पदपर आसीन होता है और ८०% आनेपर सदगुरु पदपर आसीन होता है और ९०% स्तरपर परात्पर पद यह साध्य हो जाता है | स्तरानुसार साधनाको भली भाँती समझ लेनेपर मैं शिष्य पद अर्थात ५५% का ध्येय रख साधना करने लगी और उसी अनुसार तन, मन, धनका त्याग भी करने लगी | इश्वरकी कृपासे एक वर्षके पश्चात २१ जुलाई १९९८ को पूर्णकालिक साधकके रूपमें परमपूज्य गुरुदेवके शरणमें रहकर साधना करने की अनुमति मिल गयी | और उसी महीने मुझे फरीदाबाद में धर्म-प्रसारकी सेवाके लिए भेजा गया | अगस्त १९९८ मैं एक दिन मैं मन ही मनमें सोच रही थी कि परमपूज्य गुरुदेवने एक प्रवचनमें कहा था कि प्रत्येक साधकने पहले ५५% स्तर साध्य करनेका प्रयत्न करना चाहिए तो यह ध्येय तो मैंने साध्य कर लिया है, ऐसा मुझे लगता है, अब आगे क्या ? गुरु सर्वज्ञानी होते हैं इसका परिचय आगेकी घटनाक्रमसे पुनः हो जायेगा | यह विचार मेरे मनमें आये दो दिन ही हुए होंगे कि एक जयेष्ट साधकने मेरे हाथमें परम पूज्य गुरुदेवद्वारा लिखी एक नयी ग्रन्थ 'गुरुकृपयोग' मुझे थमा दी और कहा, "नया ग्रन्थ है कल दिल्लीमें ISBN का क्रमांक लेने हेतु जमा करना है आप एक दृष्टी डालना चाहती है तो डाल सकती हैं " | मैं वह ग्रन्थ रातमें लेकर पढने लगी तो सर्व प्रथम एक मुद्देने मेरा ध्यान आकर्षित किया और वह था गुरुका स्तर और तदनुरूप उनके शिष्यका स्तर | उस मुद्देमें लिखा था कि ९०% से अधिक स्तरके संतके शिष्य होनेके लिए कमसे कम हमारा स्तर ८०% होना चाहिए | उस ग्रन्थमें अनेक प्रसंग उल्लेल्खित है जिससे स्पष्ट होता है कि परम पूज्य गुरुदेव ९०% स्तरके ऊपरके संत हैं और इस प्रकार उनका खरा शिष्य ८०% वाले साधक ही हो सकते हैं | यह विषय जान कुछ क्षणोंके लिए मेरा मन बैठ गया अर्थात मेरे श्रीगुरुके शिष्य बनने हेतु ५५ प्रतिशत स्तर नहीं वरन ८० प्रतिशत स्तर साद्ध्य करना होगा !

बचपनसे ही मुझे सदा ध्येय (टार्गेट) रखकर कार्य करनेकी आदत थी और कुछ दिनोंसे मनमें आ रहा था कि साधनामें मेरा अगला ध्येय क्या है, मैं समझ गयी, मेरे श्री गुरुका इस मुद्देकी ओर ध्यान आकृष्ट करनेका कारण क्या था और उसी दिनसे सोच लिया कि अब अगला ध्येय साध्य करने हेतु प्रयत्न करना है क्योंकि परम पूज्य गुरुदेवका शिष्य बनना यही जीवनका एकमात्र लक्ष्य था और परमपूज्य गुरुदेवने भी मेरे इस ध्येयको भी पहचान लिया था सच तो यह है कि गुरु ही ध्येय देते है और उसे पूर्ण भी वही करवाते हैं हम तो मात्र निमित्त भर होते हैं !

उन्होंने खरे अर्थमें यह पहचान लिया था और इसलिए अगला ध्येय भी मुझे दे दिया था और उसके लिए भी मैंने वर्ष तय कर उस दिशामें प्रयत्न आरम्भ कर दिए और मेरे सर्वज्ञानी गुरुने मेरे उस ध्येयको जान मुझे सूक्ष्म मार्गदर्शन करने आरम्भ कर दिए और एक समय आया जब मैं दो वर्षके लिए अपने ध्येय भूल स्थूल प्रसारमें मग्न हो गयी तब मेरे श्रीगुरुने मुझे पुनः मेरे ध्येयका सूक्ष्मसे स्मरण करा कर उस दिशामें आगे बढ़ने हेतु मार्गदर्शन भी किये |

To be continued …………..

If any of my friend would  like to translate this series of article as a part of seva in  Englsih please do inform me at upasana908@gmail.com as I have friends spread over 90 countries who would like to read this series of article if it gets published in English too , I wont  be able to translate the article due to time constraint . regards – tanuja






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