Saturday 27 August 2011

मन की एकाग्रता साध्य कैसे करें ?

 मन की एकाग्रता क्यों आवश्यक है ?
सर्वप्रथम हम यह देखेंगे कि मनकी एकाग्रता साध्य करना आवश्यक क्यों है ? हम किसी भी आश्रममें हों मनकी एकाग्रताका होना परम आवश्यक है | हमारी भारतीय संस्कृतिमें चार आश्रम बताये गए ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास ! इस चारों आश्रममें मनकी एकाग्रतापर ही हमारे जीवनकी उपलब्धियां निर्भर करती हैं | जैसे विद्यार्थी जीवनमें यदि किसी विद्यार्थीका मन एकाग्र न हो तो वह विद्याअर्जन योग्य प्रकारसे नहीं कर पायेगा क्योंकि विद्या अर्जन अर्थात अध्ययन करनेके लिए मनका एकाग्र होना आवश्यक है | जिस विद्यार्थीकी मनकी एकाग्रता जितनी अधिक होती उसकी ग्रहण शक्ति और स्मरण शक्ति भी उतनी ही अधिक होती है और ऐसे विद्यार्थीको हम तेजस्वी छात्र कहते हैं | जिस विद्यार्थीकी मनकी एकाग्रता अधिक हो वह जिस भी क्षेत्र में रहेगा, वह सफल होगा ही | अतः विद्यार्थी जीवन हेतु मनकी एकाग्रता आवश्यक है |
गृहस्थ जीवनमें मनकी एकाग्रताका होना आवश्यक है चाहे कोई स्त्री हो या पुरुष | जैसे मान लीजिये कोई स्त्री भोजन बना रही हो और उसके मनमें कोई अन्य विचार चल रहे हों तो वह भोजन जल जायेगा चाहे वे वहीँ खड़ी क्यों न हों ! उसी प्रकारसे यदि पुरुष किसी कार्यालयमें काम कर रहे हों और हिसाब करते समय उनके मनमें कोई और विचार चल रहे हों तो हिसाबमें चूक हो जाएगी | आज वैज्ञानिकोंने शोध कर पाया है कि हमारे जीवन की ८०% समस्याएं psychosomatic होती है अर्थात मनके अशांत रहनेके कारण हमें ८०% शारीरिक और मानसिक कष्ट होते हैं अतः स्वस्थ जीवन हेतु मनकी एकाग्रता साध्य करना आवश्यक है |
शास्त्रों में बताया गया है कि वानप्रस्थ जीवन अर्थात जहाँ गृहस्थने अपनी उत्तरदायित्वको अपनी अगली पीढीको सौंपकर साधनामें अधिकाधिक समय बितानेका प्रयास करना चाहिए | परन्तु आज वानप्रस्थ आश्रम तो जैसे लुप्त ही हो गया है जानते हैं क्यों ? हमने ब्रह्मचर्य और गृहस्थ जीवनमें मनको एकाग्र करनेका प्रयास नहीं किया फलस्वरूप हमारे जीवनमें यह चरण आता ही नहीं है और मृत्युपर्यंत हम गृहस्थ जीवनमें ही रह जाते हैं | पिछले चौदह वर्षसे भारतके भिन्न प्रान्तोंमें जानेकी संधि इश्वरने दी है और क्या पाया है कि आजकल अधिकाँश वृद्ध अत्यधिक अशांत रहते हैं, क्यों ? अपने पुत्र एवं पुत्रकी भविष्यके बारेमें विचार करते रहनेके कारण | यह सब क्यों होता है यह मोह जाता नहीं और आसक्ति छूटती नहीं तो मन उसमे ही उलझा रहता है और जीवनमें अशांति बनी रहती हैं |
अब चौथे आश्रमकी भी स्थिति देखे लें चौथा आश्रम है सन्यास | सन्यास लोग क्यों लेते हैं एक ही कारण होता कि परम पिता परमेश्वरकी प्राप्ति हो | इश्वरप्राप्ति क्या होती है ? जब हमारा मन पूर्णतः निर्विचार हो जाये उसे ही इश्वर प्राप्ति, मोक्ष प्राप्ति, आनंद प्राप्ति आत्मसाक्षात्कार कहते हैं परन्तु यह करना भी बहुत कठिन है हमारे शास्त्रों में कहा गया है 'मन एव मनुष्यानाम कारण बंधमोक्ष्यो:' अर्थात हमारा मन ही हमारे बंधन और मोक्ष दोनोंके लिए कारणभूत है अतः मनकी एकाग्रता साध्य करना आवश्यक है |
अब मैं आपको अधिकांश सफल व्यक्तिकी सफलताका रहस्य बताती हूँ | चाहे कोई तेजस्वी विद्यार्थी , सुघड़ गृहिणी हो या सफल व्यवसायी प्रत्येक क्षेत्रके सफल व्यक्तिकी एक विशेषता सभी में सामान होती है और वह है मनकी एकाग्रता अर्थात मनकी एकाग्रता यश, सुख, सम्स्रुद्धि एवं शांति का कारण होता है |
क्रमशः
संकलक - तनुजा ठाकुर

3 comments:

  1. दीदी जी, प्रणाम
    चार आश्रमों में एक आश्रम है संन्यास आश्रम............... मेरी जिज्ञासा ये है की-- क्या घर परिवार को त्याग कर एकांतवाश या परिवार से कहीं दूर आश्रम या तीर्थों में जाकर आमरण रहने को ही संन्यास कहते हैं या परिवार में ही रहकर भी व्यक्ति सन्यासी हो सकता है ~ जहाँ तक मुझे ज्ञात है हो सकता है मैं गलत होऊ -- किसी शास्त्र में भगवान् ने स्वयं कहा है की जो व्यक्ति काम में भी राम को ढूढता सच्चे अर्थों में वही सन्यासी है -- क्या घर परिवार के दायित्वों को त्यागकर सन्यासी बन जाना पाप नहीं है -- निष्काम भाव से परिवार समाज के बीच रहकर व्यक्ति सन्यासी सा जीवन व्यतीत नहीं कर सकता ~ इति शुभ.... कृपया मेरी जिज्ञासा शांत करने की कृपा करें.....

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  2. आपकी बात तो बिलकुल ठीक है पर इसमें केवल एकाग्रता का महत्व दे रखा है परन्तु इसमें तो इसको करने के उपाए दे ही नही रखे वैसे मुझे पता नही है ब्लॉग में अपना कोलम कान्हा से लिखते है नही तो में इसे विस्तृत में बताता एकाग्रता कैसे जीवन में अपना सकते है आपका धन्यवाद इस अनमोल ज्ञान को देने के लिए

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  3. Namastey dii! Ekagrata kaise prapta karen iske niyam btao na.

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