Sunday 29 January 2012

साधना की दृष्टिकोण देती प्रेरक कथाएँ भाग – 10



संतों ने क्या साधना कि वे संत बने इसकी अपेक्षा संत के स्थूल कृति का अनुकरण कारण पूर्णत: अनुचित है | इस संदर्भ में एक छोटी सी कथा अत्यंत प्रेरणादायी है | एक बार एक शिष्य को अपने गुरुजी के स्थूल कृति के अनुकरण करने की आदत थी, गुरुजी ने कई बार उसे उसकी चूक ध्यान दिलाई परंतु शिष्य की इस स्वभाव में कोई सुधार नहीं दिखा तब गुरुजी ने उसे प्रत्यक्ष में सीख देने की सोची | एक दिन गुरुजी और शिष्य दोनों हरिद्वार में गंगा स्नान कर रहे थे, स्नान के दौरान एक बार गुरुजी की अंजुली में चार छोटी मछलियाँ आ गईं, शिष्य ने देखा, गुरुजी मछलियों को अंजुली के जल के साथ निगल गए | शिष्य ने अंजुली में जल उठाया तो गुरुलीला अनुसार उसके अंजुली में भी चार मछलियाँ आ गईं, शिष्य ने गुरुजी का अनुकरण करते हुए उन्हें निगल गया | पंद्रह दिन के पश्चात दोनों गुरु शिष्य वाराणसी के गंगाजी में स्नान कर रहे थे गुरुजी ने शिष्य को दिखते हुए डकार लगाई और चार मछलियाँ थोड़ी बड़ी आकार में निकल आयीं और वह भी जीवित, गुरुजी ने कहा इनके परिवार वाले इनकी राह देख रहे थे अतः इन्हें यहाँ छोड़ देता हूँ और संकेत देकर कहा तुम भी अपनी मछलियाँ पेट से निकालो”, शिष्य ने संकोचवश कहा “प्रयत्न करता हूँ पर मछलियाँ नहीं निकली, शिष्य ने कहा” शायद वे पच गयी” और अपनी इस कृति पर लज्जित हुआ और भविष्य में गुरुजी की स्थूल कृतियों का कभी भी अनुकरण न करने का प्रण ली |




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