Friday 27 January 2012

साधना की दृष्टिकोण देती प्रेरक कथाएँ भाग – ९

हमारी जैसे क्षमता होती है वैसे ही साधना हमे संत बताते हैं इसके संदर्भ में एक प्रेरक कथा  बताती हूँ
एक बार एक संत अपने कुछ शिष्यों के साथ स्मशान भूमि के पास से जा रहे थे | एक व्यक्ति अपनी पिता की जाली हुई चिता पर फूट फूट कर रो रहा था  | संत ने धीरे से और प्रेम से उस व्यक्ति के सिर को स्पर्श किया और कहन लगे “ क्या हुआ’’ ? वह व्यक्ति सुबकते हुए कहने लगा मेरे पिता का देहावसान हो गया मैं उनके बिना कैसे रह पाऊँगा “? संत ने अत्यंत प्रेम से कहा “ जो आया है उसे तो एक दिन जाना  ही है इस चिरंतन सत्य को स्वीकार करो और चलो मेरे साथ “ | इतना कह उसे उठा कर अपने साथ ले टोली में सह भागी कर लिए | एक दूसरा व्यक्ति जो अपने पिता की चिता को अग्नि देने के पश्चात दुखी हो रहा था, उसने यह सब देखा तो उसे भी लगा कि यह सब माया है अतः जब संत उनके निकट पहुंचे  तो कहने लगा “ बाबा आप मुझे भी अपने शरण में ले लें मैं इस माया मोह से तंग आ गया हूँ मुझे भी सन्यासी बनना है “| बाबा मुसकुराते हुए बोले “ घर में कौन कौन है ?” उस व्यक्ति ने कहा ,” पत्नी है, चार बच्चे हैं और बूढ़ी माँ है |  बाबा बोले “तो जाओ उनकी देखभाल करो यह तुम्हारी साधना है तुम सन्यास ले लोगे तो उनका क्या होगा” ? इतना कह उसे वापिस भेज दिया |
यहाँ एक व्यक्ति को सन्यास के लिए प्रेरित कर उसे सन्यासी बना दिया और दूसरे को गृहस्थ धर्म कि शिक्षा दी ऐसा क्यों ? पहले व्यक्ति की  साधना आत्यधिक अच्छी थी और वह  सन्यास ले साधना  पथ  पर अग्रसर हो सकता था परंतु मोह ने उसे जकड़ रह था  और वहीं दूसरा व्यक्ति अपनी दुखों के छुटकारा पाने हेतु सन्यास लेना चाहता था और वह सन्यास का  पात्र नहीं था |
हमारे श्रीगुरु ने इस संदर्भ में एक अत्यंत सुंदर बात बताई है  कि 40% स्तर के नीचे के व्यक्ति ने भूल से भी सन्यास नहीं लेना चाहिए  क्योंकि ऐसे व्यक्ति को विषय वासना का नियंत्रण करना संभव नहीं होता और प्रारब्ध भी तीव्र होता है और ऐसे लोग यदि योग्य गुरु के शरण में सन्यास न लें तो समाज में अनेक उछृंखलता जन्म लेती है |  अतः ऐसे व्यक्ति ने गृहस्थ आश्रम में प्रवेश कर अपनी इच्छाओं कि पूर्ति करते हुए साधना रत होना चाहिए | 50% स्तर के व्यक्ति को यदि साधना में अत्यधिक रुचि हो आर वह किसी योग्य गुरु के शरण  में साधना कर रहा हो तो वह बुद्धि से निर्णय ले विवाह न चाहे तो नहीं करे तो भी विषय वासना को साधना के माध्यम से नियंत्रित कर सकता है और 60% से अधिक स्तर के व्यक्ति का यदि तीव्र प्रारब्ध न हो तो  या तो उनका विवाह नहीं होता या  विवाह के कुछ समय उपरांत वे सन्यस्त समान जीवन व्यतीत करते हैं | ऐसे विवाह के इच्छुक नहीं होते या वे उच्च कोटी के संत के मार्गदर्शन में साधना करते हुए सन्यासी समान जीवन व्यतीत करते हैं या यदि गृहस्थ हो तो भी सदाचारपूर्ण वर्तन करते हुए सैयम से रहते हैं | ऐसे व्यक्ति थोड़ी साधना  करने पर अपने विषय  वासनाओं को सहज ही नियंत्रित कर सकते हैं |

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