Thursday 26 January 2012

प्रसार संस्मरण : भाग - 5


वर्ष 1999 की  बात है | उस समय में झारखंड के एक जिले में प्रसार की सेवा कर रही थी | एक दिन एक साधक के घर उनके पतिके मित्र आए थे उनसे कुछ देर बातचीत कर पता चला कि इनमें साधना की क्षमता है(धर्म प्रसार सेवा  में मेरी सूक्ष्म इंद्रियों ने प्रसार कार्य में अत्यंत सहयोग किया है ) और ये अच्छी साधना करेंगे; परंतु उन्हे कुछ आवश्यक काम से जाना था अतः हमारी कुछ विशेष बात नहीं हो पायी , उन्हें भी हमारी बातें अच्छी लगीं और वे कुछ और जानन चाहते थे | उस समय में अकेले ही एक  कमरा लेकर रहती थी और उसे सेवा केंद्र कहती थी | हमारा सेवा केंद्र पास ही था और वे चाहते थे कि हम उनसे रात्रि में अध्यात्म विषय पर चर्चा करें | हमारी उस स्त्री साधक ने कहा “ ये और हमारे पति अभिन्न मित्र हैं और प्रतिदिन रात्रि साढे नौ से साढ़े दस हम सब मिलकर बातें करते हैं आप उसी समय आ जाएँ मैं आपको रात्रि में सेवाकेन्द्र अपने नौकर के साथ भिजवा दूँगी" | ये सब एक करोड़पति की कॉलोनी थी उसी में रहते थे | मैं रात्रि में आ गयी और उनलोगों ने बड़े अच्छे से मुझे सुने और अच्छे प्रश्न भी किए | उस साधक के एक गुरु भी थे और उन्होने अपने गुरु संस्मरण सुनाये | उन्हे हमारे विषय भी अच्छे लगे और उन्होने अगले दिन पुनः रात्रि में आने का आमंत्रण  दिया | मुझे अगले महीने दूसरे शहर प्रसार के लिए जाना था अतः वहाँ का कार्य किसी योग्य साधक  को सौपकर जाना था इन चारों में मुझे वे गुण दिखाई दे रहे थे अतः मैंने अगले दिन पुनः आने का निश्चय किया | अगले दिन पहुंची तो बात ही बात में वे बोले “ तनुजाजी वैसे तो हम संतों और साधकों के पास नहीं पीते परंतु आप तो उम्र में बहुत छोटी हैं, (वे सब पचास के ऊपर की उम्र के था और मेरी उम्र के उनके बच्चे थे)  और साधन आरंभ किए भी दो वर्ष ही हुए है अतः यदि आप बुरा न माने तो हम थोड़ी थोड़ी ‘ड्रिंक’ ले लें | मैं असमंजस्य में पड़ गयी न उन्हें हाँ कह पा रही थी और  न ही स्पष्ट रूप से न कर पा रही थी  , उस दिन उन्होने अपने और तीन चार मित्रों को मुझसे मिलने के लिए बुलाया था और वे सब भी बड़ी जिज्ञासा आध्यात्मिक प्रश्न मद्य की  चुसकियों के बीच सब पूछ रहे थे | मुझे बचपन से ही शराब और सिगरेट पीने वालों से सख्त चिढ़ थी और उसके दुर्गंध भी सहन नहीं होते थे | मुझे विदशी शराब की दुर्गंध आ रही थी , मैं किसी प्रकार वह सब सहन कर उनकी जिज्ञासा शांत कर वापिस आ गयी और फिर कभी भी वहाँ न जाने का निश्चय कर लिया और उन सब पर हल्का सा क्रोध भी आ रहा था | अगले दिन उनका सुबह-सुबह दूभाष आया कि उनके मित्रों को मेरी बातें अत्यधिक अच्छी लगी और वे सब भीं कई  स्थान पर प्रवचन का आयोजन करने की बात कर रहे हैं | मैंने उन्हे कुछ विशेष नहीं कहा | मैंने सोच लिए था “ चाहे वे प्रवचन आयोजित करवाएँ या भविष्य में साधना करें, मैं अब उनके यहाँ जाकर आध्यात्मिक चर्चा नहीं करूंगी | उसी समय टीवी पर समाचार के लिए एक चैनल लगाने जा रही थी कि उसमे एक संत का प्रवचन आ रहा था “ वे कह रहे थे कमल को तोड़ने के लिए कीचड़ में जाना ही पड़ता है” | मेरे आँखों में आँसू थे , मैंने मन ही मन श्रीगुरु से कहा “ मुझे पता वे भविष्य में साधना करेंगे परंतु मुझे शराब का गंध सहन नहीं होता मैं क्या करूँ “ | वे संत आगे कहन लगे “ यदि कोई कीचड़ से डरे तो क्या कभी कमल को पा सकेगा “ मैं ईश्वर का संकेत समझ गयी | उन सब का संध्या से ही नौकर से संदेश और दूरभाष आने लगा “ मैं भारी मन से वहाँ पहुंची वहाँ उनके और कई मित्र अपनी पत्नी के साथ पधारे थे और वही वातावरण था, मैंने उनके शंका समाधान किए और वे भी प्रसन्न हो साधना करने लगे | आज दस वर्ष के पश्चात भी उनमे तीन साधक साधना रत है मात्र आज जहां पहले उनेक यहाँ BAAR(शराब रखने का विशेष स्थान) हुआ करता था , वहाँ हमारे श्रीगुरु का चित्र लगा रहता है | एक वर्ष पश्चात उनमे से दो साधकों ने मुझसे क्षमा मांगी कि आप हमें साधना बताने आई थी और हमने आपके सामने शराब पी, आप हमें क्षमा करें | मैंने उन्हें क्षमा कर दी , वस्तुतः वह मेरी भी परीक्षा ही थी और गुरुकृपा से मैं उत्तीर्ण हो गयी उस शहर के पश्चात दोबारा ऐसी परिस्थिति ईश्वर ने नहीं निर्माण की इस हेतु मैं उनकी कृतज्ञ हूँ |

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