Thursday 26 January 2012

मातृ देवो भाव पितृ देवो भाव भाग – 6

मातृ देवो भाव पितृ देवो भाव भाग – 6 
गुरुकृपा से हमें अध्यात्मिक माता पिता का लालन पालन मिला, परन्तु दुर्भाग्य से उनका साथ १९९९ में ही हमसे सदा के लिए छूट गया , इस लेख की श्रृंखला में हम उनसे जुड़े कुछ संस्मरण जो अनेकों के लिए प्रेरणादायी सिद्ध हो सकती, उसे सबके साथ बांटना चाहूंगी | 
मैं कक्षा आठवीं में थी | एक दिन अचानक जून महीने के दोपहर में हमारी एक शिक्षिका जिन्होने हमें पहली कक्षा में पढ़ाया था ,हमारे घर पहुंची | वे एक ANGLOINDIAN थी और उनकी उम्र लगभग 75 वर्ष की होगी , उनकी कमर झुकी हुई और कूबड़ निकल आया था | वे पहले भी कई बार हमारे घर हमारे माता-पिता से मिलने आ चुकी थी और एक घंटे में वापिस अपने घर चली जाती थीं | उनका बेटा यहीं रहता था और शेष परिवार लंदन में रहता था | इस बार जब वो आयीं तो संध्या के पाँच बज गए पर वे बातचीत करती रहीं मेरी माँ को उनकी उम्र को लेकर थोड़ी चिंता थी कि संध्या हने वाली है और उनका घर भी दूर है अतः उन्होने उनसे कहा “आप अकेली आई हैं अंधेरे में जाने में कोई कठिनाई तो नहीं होगी न, अन्यथा आप यहीं रुक जाएँ , पता नहीं शायद आज वे मन बनाकर आयीं थी हमारे घर रहते हेतु, वे अत्यंत प्रसन्न हो गयी और कहने लगी मैं आज यहाँ रुक सकती हूँ क्या ? माँ ने कहा “ हाँ हाँ , अवश्य रुक जाएँ तनुजा के पिताजी भी आते होंगे आपसे मिलकर उन्हें भी अच्छा लगेगा” | रात्रि में माँ पिताजी ने उनकी अत्यंत प्रेम से सेवा की और भोजन खिला कर उन्हे प्रेम से सुलाया | वे अत्यधिक प्रसन्न थीं | सुबह जब वे उठीं तो वे थोड़ी परेशान थीं माँ को बोलीं “ रात्रि में बिछावन पर ही उनसे लघुशंका हो गयी | मेरी माँ ने उनकी उम्र जानते हुए उन्हे सहज किया और कहने लगीं “ कोई बात नहीं बच्चे और वृद्ध बराबर होते हैं आप चिंता न करें मैं बिछावन स्वच्छ करवा दूँगी” | पिताजी भी कहने लगे “आप हमारी माँ समान है आप इस बारे में तनिक भी न सोचें “ मेरे माँ-पिता का यह भाव देख वे रोने लगी और उन्हें आशीर्वाद दें जलपान कर चली गईं | मेरे माता-पिता मे बिछावन नौकरनी से धुलाया और सुखाया भी | परंतु एक बात जो मुझे समझ मैं नहीं आयी, शिक्षिका के जाने के पश्चात पिताजी ने पहले गौमूत्र पूरे घर में छिड़के और तत्पश्चात गंगा जल का छिड़काव किया | गर्मी की छुट्टियाँ थीं अतः मैं सब कुछ चुपचाप देख रही थी | उसके पश्चात उन्होने एक छोटा से हवन भी किया | संध्या के समय अपने पिताजी से पूछा “ मेरी शिक्षिका के सामने तो आप उन्हे अत्यंत आदर और प्रेम से बात कर रहे थे पर उनके जाने के पश्चात इतना शुद्धिकरण क्यों ? वे ईसाई हैं तो क्या वे भी तो मानव ही हैं ‘’? मैं अपने पिता से सभी विषयों पर चर्चा करती थी और वे बड़े प्रेम से मेरे प्रश्नों का उत्तर दिया करते थे | वे अत्यंत धार्मिक और सात्त्विक विचारधारा के व्यक्तितत्त्व थे | मेरे व्यक्तित्व को निखारने में उनका विशेष योगदान रहा है और मुझे ऐसे माता –पिता ईश्वर ने दिये इस हेतु मुझे कृतज्ञता होती है | मेरे पिता ने बड़े प्रेम से समझाया “ बेटा, वे आपकी आचार्य थीं हमारे भारतीय संस्कृति में ‘आचार्य देवो भव’ बताया गया है अतः उनका सम्मान करना हमारा धर्म है | वे कल हमारी अतिथि थी अतः उनका यथा शक्ति सेवा करना भी हमारा कर्तव्य था | उनसे लघु शंका हो गयी और उन्हे बोध नहीं रहा परंतु उनकी उम्र में ऐसा हो सकता है एक दिन हम भी तो वृद्ध होंगे यह हमने कभी नहीं भूलना चाहिए अतः वृद्ध जनों की यथा शक्ति सेवा भी प्रेम से करना चाहिए | अब रही बात शुद्धिकरण की तो वे ईसाई हैं वे गौ मांस खाते हैं , शराब पीते हैं, कई दिनों तक स्नान नहीं करते, शौच के पश्चात पानी भी नहीं लेते ,यह सब कुसंस्कार है उससे हमारा घर जिसे हम मंदिर मानते हैं उसकी शुचिता कम हो जाती है अतः उसका शुद्धिकरण आवश्यक है, व्यक्ति के संस्कारों का हमारे घर एवं मन दोनों पर प्रभाव पड़ता है ” | मुझे उनकी बात समझ में आ गयी | ईश्वर की कृपा से कुछ दिन पश्चात पहली बार हमे उनके घर जाने की संधि मिली; परंतु आश्चर्य जैसे मेरे पिता ने कहा था वह सब मैं अनुभव कर पाई , उनके घर में जाने के पश्चात एक विचित्र सी दुर्गंध ने मेरा ध्यान खींचा | हमारी शिक्षिका का बाहर का बैठक कक्षा सुंदर था परंतु जब उन्होने मुझे कुछ अपने अंदर वाले कमरे से कुछ लाने के लिया कहा तो वहाँ उनके और उनके बेटे का अंतर्वस्त्र एक खूंटी में पड़ा था जो इनता गंदा था कि उसे देख मुझे उबकाई आ गयी | उस दिन मुझे समझ में आया कि संस्कार किसे कहते हैं !!!

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