Tuesday 24 January 2012

साधना की दृष्टिकोण देती कुछ प्रेरक कहानियां भाग -8



वर्ष 1999 में एक मंदिर में साप्ताहिक सत्संग लिया करती थी, वहाँ अधिकांश स्त्री साधक की उपस्थिती हुआ करती थी  | एक दिन मैंने देखा, एक पुरुष साधक लगातार कई सप्ताह से उस सत्संग में आ रहे हैं और बड़ी जिज्ञासा से मेरी बात सुन उसे लिख कर रखा करते थे | एक दिन एक और पुरुष उस सत्संग में आए, उन्होने कहा “आपका सत्संग में  प्रत्येक सप्ताह ध्वनि प्रक्षेपक (माइक) से सुनता हूँ परंतु यहा अधिकांश स्त्रीयों की उपस्थिती देख मैं थोड़ा संकोच करता रहा और सत्संग में नहीं आता था परंतु आज आने के पश्चात  मुझे अभूतपूर्व  आनंद मिला परंतु पुनः आने में संकोच होता है ’’  |  उस सज्जन की ओर देखकर पूछा जो नियमित सात सप्ताह से आ रहे थे | मैंने कहा “इन्हें यहाँ आने में संकोच आता है  आप यहाँ कैसे आते हैं ,क्या आपको भी संकोच होता है ? उस सज्जन ने बड़े ही नम्रता से कहा “ दीदी, आज्ञा हो तो एक  छोटी सी कथा बताऊँ ?” माने कहा “ हाँ बताएं” | उन सज्जन ने जो कहा बताई वह इस प्रकार था
“संत मीरा बाई अपने कुछ भक्त के साथ हरि नाम संकीर्तन करते हुए अपने कान्हा के धाम वृंदावन  जा रही थीं , एक दिन संध्या हो चला था , उनके एक भक्त ने कहा “ माँ, अब हमें आगे नहीं जाना चाहिए हमारे साथ भक्त की टोली में बच्चे और स्त्री साधक अनेक हैं , आगे घना जंगल है , हम आसपास यहीं  कहीं रात्री काट लेते हैं “| संत मीरा बाई ने भी हामी भर दी और कहा की  पूरी टोली के लिए कोई आसरा देखो | एक भक्त ने कहा “ कुछ ही दूरी पर एक संत का बड़ा आश्रम है हम सब वहीं रुक जाएगे | माँ ने हामी भर दी | पूरी टोली उस आश्रम पहुंची | आश्रम का एक सेवक द्वार पर खड़ा था , मीराबाई ने कहा “ क्या मुझे और मेरी भक्त की टोली को रात्रि निवास के लिए स्थान मिलेगा ?” सेवक ने कहा “ मैं स्वामीजी से पूछ कर बताता हूँ “ | सेवक ने स्वामीजी से मिलने के पश्चात आकर बोला “ स्वामीजी ने कहा है इस आश्रम में मात्र पुरुष ही रुक सकते हैं , यहाँ सब ब्रह्मचारी रहते हैं “| मीरा बाई ने पंक्ति लिखकर उस सेवक को पकड़ा दी और कहा “अपने स्वामीजी को देकर आयें | स्वामीजी ने जैसे ही उस पंक्ति को पढ़ा वे दौड़ कर आए और मीरबाई के चरणों में गिर पड़े और कहा “ माँ, हमे  क्षमा करना, हम आपको पहचान नहीं पाये | “ मीराबाई ने जो एक पंक्ति लिखकर भेजी थी  वह इस प्रकार था “ मुझे लगा था कि इस संसार में एक ही पुरुष और शेष सभी नारी , आज पता चला कि दो पुरुष  हैं !!! जय श्री कृष्ण “ | यह पढ़कर उस सन्यासी को समझते देर न लगी कि कोई आत्मज्ञानी उनके द्वार पर आकार खड़ा है और वह भागा भागा मीराबाई से क्षमा मांगने चला आया |
यह कहकर उस सज्जन ने कहा “ मैं यहाँ सत्संग में धर्म के ज्ञान लेने आया हूँ कौन दे रहा और कौन श्रोता है इसमे मुझे विशेष रुचि नहीं है |  यह सुन एक और जो सज्जन आए थे उन्होने कहा ‘’ आपने मेरी आँख खोल दी अब मैं निश्चित ही प्रत्येक सप्ताह आऊँगा |

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