Friday 27 January 2012

मातृ देवो भाव पितृ देवो भाव !! भाग – 7



 ईश्वरम् यत् करोति शोभनं करोति !!!
वर्ष 1990 में बिहार इंटर काउंसिल में हुए व्यापक स्तर पर भष्टाचार कि मैं भी शिकार हुई और मुझे 98% अंक के स्थान पर 58% से संतोष करना पड़ा ! मुझे इस प्रसंग ने अंदर तक झकझोड़ कर रख दिया | एक दिन मैं थोड़ी निराश होकर अपने पिताजी से पूछने लगी, “ मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ” ? पिताजी  ने मेरी उत्साहवर्धन करे हेतु कहा, “इसमे भी कुछ तो भलाई छिपी होगी, ईश्वरम् यत् करोति शोभनं करोति अर्थात ईश्वर जो करते हैं हमारे भले के लिए करते हैं “ | मैंने कहा “ इसमे कैसी  भलाई (क्योंकि मैं अपने रुचि अनुसार प्रतिष्ठान में प्रवेश नहीं पा सकती थी उतने कम अंकों की सहयता से ) “ वे बड़े प्रेम से कहने लगे , “ हम और आप एक तल्ले पर खड़े है और ईश्वर 100 तल्ले पर उन्हे पता है कि उनकी बेटी के सबसे योग्य क्या है आप निराश मत हो देखना एक दिन आपको भान होगा कि ईश्वर का आप पर विशेष प्रेम था अतः उन्होने यह सब आपके लिए नियोजित किया, आज नहीं परंतु आज से कुछ वर्ष के पश्चात आपो भान होगा कि ईश्वर ने जो भी किया मेरे लिए योग्य ही किया “|  
 आज जब मैं पीछे मुड़कर देखती हूँ तो भान होता है कि पिताजी कि बातें अक्षरश: सत्य थीं | उस प्रसंग ने मेरे जीवन कि दिशा परवर्तित कर दी और उस दिन के पश्चात मैं व्यष्टि हितार्थ नहीं अपितु समष्टि हितार्थ उद्देश्य से अपने  ध्येय चुने और उस हेतु अग्रसर होने लगी | मैंने संकल्प लिया किया अपने आप को सामर्थ्यवान बनाकर एक स्वस्थ समाज की रचना करूंगी जिससे और किसी तनुजा को यह दिन देखना न पड़े |

मातृ देवो भाव पितृ देवो भाव भाग - 2   

वर्ष १९९० में बिहार इंटर काउन्सिल में व्यापक स्तर पर हुए भ्रष्टाचार के कारण परीक्षा परिणाम में अपेक्षित यश नहीं मिला अतः मैं निराश हो गयी थी, मेर पिता ने मुझे अत्याधिक प्रेम से कहा " बेटा, सूर्य के प्रकाश को बादल कुछ देर तक ढक सकता सदा के लिए नहीं, आप अपना कर्म करते जाओ यदि आपमें प्रकाश होगा तो एक न एक दिन आप स्वतः प्रकाशमान हो जाओगे " पिता की उन वाक्य ने मुझमे नयी स्फूर्ति डाल दी और मैं पुनः पूर्ण एकाग्रता के साथ अपने कर्म की ओर प्रवृत्त हो गयी |
मातृ देवो भाव पितृ देवो भाव भाग -3  
१९९० में बिहार इंटर काउन्सिल में हुए भष्टाचार के कारण बारहवी के परीक्षा परिणाम में अपेक्षित यश न मिलने पर मुझे पूरी व्यवस्था में फैले भ्रष्टाचार के विरुद्ध आन्दोलन करने की तीव्र इच्छा हुई और और एक स्वस्थ समाज की रचना करने की प्रेरणा जागृत हुई मैंने अपने पिता से कहा " हम इनकी मनमानी नहीं सहेंगे इसका विरोध करेंगे:" , मेरे पिता ने अत्यंत सहजता से कहा , " बेटा, आज के दुर्जन संगठित और शक्तिशाली हैं आप अपना सामर्थ्य बढाओ ताकि इनका जड़ से समाप्त कर सको , उस दिन से आज तक मैं दुर्जनों को जड़ से मिटने हेतु अपना शारीरिक, मानसिक और अध्यात्मिक सामर्थ्य बढ़ा रही हूँ और ईश्वर की आज्ञा होने पर उनका सर्वनाश अवश्य करुँगी , इसके लिए मैंने आज तक अपनी उस आक्रोश को बनाये रखा है | "

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