Wednesday 25 January 2012

शंका समाधान :


पितरोंके कष्टके विषयमें सुननेके पश्चात कुछ अल्पज्ञानी एवं तथाकथित ज्ञानमार्गी कहते हैं कि भगवान कृष्णने गीतामें कहा है कि मृत्यु-उपरांत जीवात्मा पुनः शरीर धारण कर लेती है | अतः पितरोंका तो तुरंत जन्म हो जाता है, फिर उन्हें गति नहीं मिलने वाला विषय कहाँ उठता है ?

ऐसे प्रश्नोंका उत्तर देनेके लिए अध्यात्म-शास्त्र समझ लें | पहली बात तो यह है कि जब तक हम अपने संपूर्ण संचितको (हमारे सम्पूर्ण पाप और पुण्य ) समाप्त नहीं कर लेते, जीवात्मा बार-बार पृथ्वीपर जन्म-मरणके चक्रको धारण करती है | पृथ्वीको मिलाकर सात लोक हैं – भू, भुव, स्वर्ग, महा, जन, तप और सत्य | मृत्यु उपरांत जीवात्मा अपने कर्म अनुसार एवं साधना अनुसार विभिन्न लोकोंमें जाती है| यदि किसी जीवात्मा ने बहुतसे पाप-कर्म किये हैं, तो उसे नरक यातना भोगना पड़ता है, और यदि पुण्य किये हों, तो उस जीवात्माको स्वर्गलोकका सुख प्राप्त होता है |( गीता में कई स्थान पर स्वर्गलोक शब्द का भी प्रयोग किया गया है , यदि जीवात्मा अन्य लोक में नहीं जाती तो स्वर्ग लोक का उल्लेख नहीं आता |) स्वर्गलोकमें पुण्य भोगकर समाप्त करनेके पश्चात् या नरक में दंड भोगने के पश्चात, उसे पुनः पृथ्वीपर जन्म धारण करना पड़ता है| यह क्रम चलता रहता है | जो जीवात्मा साधना कर ब्रह्मज्ञानी हो जाते हैं, उनका यह जन्म-मरणका चक्र समाप्त हो जाता है, और वे महालोकमें चले जाते हैं और पुनः पृथ्वी पर द्रुत गतिसे साधना हेतु, या इश्वर-इच्छासे धर्मकार्य करने हेतु आते हैं, इन्हें दिव्य- जीवात्मा कहते हैं | अत्यंत उच्च कोटी के पूर्णा या प्रमहनस के स्तर के संत को सदेह मुक्ति मिल जाती है |
यदि किसी लिंगदेहकी कोई वासना या इच्छा अतृत्प हो, तो वह स्वर्ग या नरकके हेतु भी प्रवास नहीं कर पाती है, और ऐसे लिंगदेहको अतृप्त लिंगदेह कहते हैं | इस हेतु उनके वंशजको साधना कर उन्हें गति देनी पड़ती है, इसे पितृ-ऋण भी कहते हैं | भगवान श्रीकृष्ण ने गीतामें कहा है कि मात्र इस लोकमें आनेपर जीवात्मा शरीर धारण करती है, और इस बारेमें गीताके दूसरे अध्यायमें भगवान श्रीकृष्णने कहा है –
अव्यक्तादिनी भूतानि व्यक्तमध्यानी भारत
अव्यक्तानिधानान्येव तत्र कापरिदेवना
संपूर्ण प्राणी जन्मसे पहले अव्यक्त थे, और मरनेके पश्चात अव्यक्त अर्थात बिना शारीर वाले ही है, मात्र इस धरतीपर वे शरीर-धारी होते हैं, अतः उस विषयमें चिंता कैसी?

इससे यह स्पष्ट होता है कि तथाकथित बुद्धिवादी या तथाकथित ज्ञानमार्गी का ज्ञान खोखला है और वे समाज को अध्यात्म का कुअर्थ बता कर दिग्भ्रमित करते हैं |

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